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00:59, 3 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
इस विस्तृत-वीरान काल-खण्ड पर
उकुड़ूं-उदास बैठी है एक दूरी ।
दूरी : जो हरम से धक्के देकर निकाल दी गई है !
ख्वाबगाहों से ज़लील होकर लौटी है !
क्योंकि : यह, वह नहीं थी
:जो अधिकांश थे !
:इसने वह नहीं जिया
:जो अधिकांश जीते हैं
:वह नहीं देखा
जो अधिकांश देखेंगे !
यह तो सिर्फ एक तिरस्कृत दूरी है !
ज़लील-उदास-थकी-हारी दूरी-मात्र दूरी !
(1965)
</poem>