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नाथ निरंजन आरती साजै | । गुरु के सबदूं झालरि बाजे ||।।
अनहद नाद गगन में गाजै, परम जोति तहाँ आप विराजै | । दीपक जोति अषडत बाती, परम जोति जगै दिन राती | । सकल भवन उजियारा होई, देव निरंजन और न कोई | । अनत कला जाकै पार न पावै, संष मृदंग धुनि बैनि बजावै | । स्वाति बूँद लै कलस बन्दाऊँ, निरति सुरति लै पहुप चढाऊँ | । निज तत नांव अमूरति मूरति, सब देवां सिरि उद्बुदी सूरति | । आदिनाथ नाती मछ्न्द्र ना पूता, आरती करै गोरष ओधूता | ।
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