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उसे क्या कहूँ / दुष्यंत कुमार

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{{KKRachna
|रचनाकार=दुष्यंत कुमार
|संग्रह=सूर्य का स्वागत / दुष्यन्त दुष्यंत कुमार
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<poem>
किन्तु जो तिमिर-पान
औ' ज्योति-दान
करता करता बह गया
उसे क्या कहूँ
कि वह सस्पन्द नहीं था ?
किन्तु और जो तिमिर-पान<br>मन की मूक कराहऔ' ज्योति-दान<br>ज़ख़्म की आकठिन निर्वाहव्यक्त करता करता बह रह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>कि वह सस्पन्द गीत का छन्द नहीं था?<br><br>
और जो मन की मूक कराह<br>ज़ख़्म की आह<br>कठिन निर्वाह<br>व्यक्त करता करता रह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>गीत का छन्द नहीं था?<br><br> पगों कि संज्ञा में है<br>गति का दृढ़ आभास,<br>किन्तु जो कभी नहीं चल सका<br>दीप सा कभी नहीं जल सका<br>कि यूँही खड़ा खड़ा ढह गया<br>उसे क्या कहूँ<br>जेल में बन्द नहीं था?<br><br/poem>
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