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समर शेष है / रामधारी सिंह "दिनकर"
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19:14, 5 अप्रैल 2011
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,<br>
ज्यों का त्यों
खड़ा
है
खड़ा
, आज भी मरघट
-सा
संसार ।<br><br>
वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है <br>
प्रभाष
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