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माता की मृत्यु पर / प्रभाकर माचवे
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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभाकर माचवे
}}{{KKAnthologyDeath
}}
{{KKCatKavita}}
माता ! एक कलख है मन में, अंत समय में देख न पाया <br>
आत्मकीर के उड़ जाने पर बची शून्य पिंजर सी काया ।<br>
Pratishtha
KKSahayogi,
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