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03:13, 10 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ज़िया फतेहाबादी
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<poem>
नौशगुफ़ता फूल तेरा मुस्कराना है बजा
बुलबुलों के गीत सुन कर झूम जाना है बजा
रँग ए जोर ए गुलिस्ताँ देखा नहीं तुने हनूज़
जब्र ए दौर ए आसमाँ देखा नहीं तुने हनूज़
तू अभी ना आशना है इन्क़लाब ए दहर से
तू अभी वाकिफ़ नहीं राज़ ए सराब ए दहर से
तू नसीम ए सुबह की आग़ोश का पाला हुआ
रांड ओ बू के दिलनशीं साँचे में है ढाला हुआ
नाचती है तेरे ऐवान ए तसव्वुर में बहार
बज रहा है पत्तियों का दिलकश ओ रंगीं सितार
तेरे कानों तक खिज़ां का नाम भी पहुँचा नहीं
तुझ को कैफ़ ए हाल में अँदेशा ए फ़रदा नहीं
मुँह धुलाती है उरूस ए सुबह शबनम से तेरा
शीशा ए दिल पाक है आलाइश ए ग़म से तेरा
ज़ह में तेरे नहीं है सूरत ए गुलचीं अभी
तुने समझे ही नहीं अन्दाज़ ए बुग़ज़ ओ कीं अभी
तू है इक जाम ए शगुफ़ता चश्म ए ज़ाहिर के लिए
और इलहाम ए मुजस्सिम क़ल्ब ए शायर के लिए
</poem>