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नदी फिर नहीं बोली / माया मृग

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इसके अंग-अंग में बसा
इसकी देहयष्टि को
अखाडा अखाड़ा बना, क्रूर होकर
पूछा तुमने,
बोलो!क्या कहती हो?
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