1,428 bytes added,
06:07, 17 अप्रैल 2011 {{KKGlobal}}
{{KKLokRachna
|रचनाकार=अज्ञात
}}
{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=ब्रजभाषा
}}
<poem>
ऐसे कपटी श्याम कुंजन बन छोड़ चले उधो ३
जो मैं होती जल की मछरिया
श्याम करत स्नान चरण गह लेती मैं उधो /ऐसे कपटी ----2
जो मैं होती चन्दन का बिरला
श्याम करत श्रृंगार मैथ बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी -----2
जो मैं होती मोर की पांखी
श्याम लगाते मुकुट मुकुट बिच रहती मैं उधो /ऐसे क पटी ----2
जोमें होती तुलसी का बिरला
श्याम लगाते भोग थल बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी -------2
जो मैं होती बांस की पोली
श्याम छेड़ते राग अधर बिच रहती मैं उधो /ऐसे कपटी-----2
जो मैं होती बन की हिरनिया
श्याम चलते बाण प्राण तज देती मैं उधो /ऐसे कपटी -----2
</poem>