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सर फ़रोशी की तमन्ना / राम प्रसाद बिस्मिल
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18:34, 19 अप्रैल 2011
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिक़ों का आज
झमघट
जमघट
कूचा-ए-क़ातिल में है।
यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।
</poem>
प्रभाष
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