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{{KKRachna
|रचनाकार=जयकृष्ण राय तुषार
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इस सुनहरी धूप में
कुछ देर बैठा कीजिए |
आज मेरे हाथ की
ये चाय ताजा पीजिए |

भोर में है आपका रूटीन
चिड़ियों की तरह ,
आप कब रुकतीं ,हमेशा
नयी घड़ियों की तरह ,
फूल हँसते हैं सुबह
कुछ आप भी हँस लीजिए |

दर्द पाँवों में उनींदी आँख
पर उत्साह मन में ,
सुबह बच्चों के लिए
तुम बैठती -उठती किचन में ,
कालबेल कहती बहनजी
ढूध तो ले लीजिए |

मेज़ पर अखबार रखती
बीनती चावल ,
फिर चढ़ाती देवता पर
फूल अक्षत -जल ,
पल सुनहरे ,अलबमों के
बीच मत रख दीजिए |
,
हैं कहाँ तुमसे अलग
एक्वेरियम की मछलियाँ ,
अलग हैं रंगीन पंखों में
मगर ये तितलियाँ ,
इन्हीं से कुछ रंग ले
रंगीन तो हो लीजिए |

तुम सजाती घर
चलो तुमको सजाएँ ,
धुले हाथों पर
हरी मेहँदी लगाएं ,
चाँद सा मुख ,माथ पर
सूरज उगा तो लीजिए |
</poem>