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14:00, 20 अप्रैल 2011 <poem>
वक्त आया है
हम खूब कविताएं लिखें
कविताओं के बारे में
इतनी कि
कविताएं हमारी जेबों से निकल
बाज़ार मे फैल जाएं
मूँगफली की रेड़ियों पर
चाय की थड़ियों पर
पनवाड़ी की पेटियों में
माचिस बीड़ी और सुपारी के साथ सजी नज़र आएं
कि कविताएं
सरपट दौड़ती गाड़ियों मे से कूद कर
चौक पर खड़ी हो जाएं
चिलचिलाती धूप मे
तमाम राहगीरों को
अपनी अपनी लेन पर चलने के निर्देश दें
कि कविताएं
पुस्तकालयों की अलमारियाँ तोड़ भागतीं धूल झाड़तीं
गलियों, नुक्कड़ों ,अड्डों और ढाबों में
घूमती बतियाती नज़र आएं - कि हम ज़िन्दा हैं
ज़िन्दा रहना चाहतीं हैं
इंसानों की तरह इंसानों के बीच
कि कविताओं के बंडल
अखबारों की तरह पहुँचे स्टालों पर
एक सनसनीखेज़ खबर
या नौकरी के किसी विज्ञापन की तरह
और टूट पड़ें नौजवानों के झुंड उन पर
कि चुनावी पर्चों की जगह बँटें कविताएं ही
चिपक जाएं कस्बों की दीवारों पर
गाँव की किवाड़ों पर
और उड़ें कागज़ के जहाज़ बन कर
हवा और बारिश में
संवेदना की महक बिखेरें
वक़्त आया है
कि हम खूब कविताएं लिखें
ज़िन्दगी के बारे में
इतनी कि
कविताओं के हाथ थाम कर
ज़िन्दगी की झंझटों में कूद सकें
जीना आसान बने
और कविताओं के लिए भी बची रहे
थोड़ी सी जगह
उस आसान जीवन में !
2003
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