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एक और सुबह / के० शिवारेड्डी

No change in size, 16:20, 20 अप्रैल 2011
सभी घरों के आगे भिन्न रंगों के पत्ते गिरकर
खूबसूरत कलमकारी ख़ूबसूरत आकल्पना में रूपायित होती हैबदल जाते हैंएक गृहिणी कमर में हाथ रखरखेउनींदापन उनींदेपन और आलस्य को में घिरी झाडू लगा रही है।है ।पौधे पौधों, पेड पेड़ों और फूलों पर दयापन सापतला बारीक कुहरा ठहर गया,शायद सुबह को सब कुछके समय
अपनी स्वाभाविक कठोरता खोकर
बडे शान से मृदुल बन जाता हैगृहिणियों , बच्चेबच्चों, पिल्लों और चिडियों कीपहली जागृत स्वाभाविक सुंदरता चकित करनेवाला है।करनेवाली है ।हम बिस्तरों पर पिघलकर और भाप छोडछोड़ते हुएतालाबों की तरह कोमलता से हिलते काँपते हैंवे हाथ हमारे आंगन आँगन कोसाफ साफ़ करने के लिए बढ रहे हैं
कुछ रंगोली बनाकर चले जाते हैं और
कुछ चाबुक लेकर निकलते हैं।
तब तक हम दाडिम दाड़िम के पेड पेड़ के पास
इकटठे हो जाते हैं,
सर्दी की आग, हाथ पांव , -पाँव और चेहरे को तापित करतप्त करती हैहम सरदी में आग का स्वागत करते हैं।किसी मॉं मॉँ ने उॅंगली अपनी उँगली सेआसमान में छेद किया होगा।होगा ।मुटठी को कसकर धीमा रेाता धीमे स्वर में रोता हुआएक सुंदर बच्चा अपनी मुटठी कसे हमारे सिर के उपर ऊपर प्रकट होगा । यदि दुनियाके दुनिया के सारे कविस्ुबह सुबह की इस वेला पर एक कविता लिखेंगेलिखेंफिर तब भी यह अनछुआ, अनर्सूंघाइस अनछुए और अनसूँघे क्षण कीविलक्षण विलक्षणता और मोहक रहेगा मोहकता बनी रहेगी ।पूरा शरीर एक छोटी -सी
कविता में सिकुडकर आगे बढेगा
जो कोर्इ्र भी हो , उसे हम सभी को अंजुली भर पानी लेकरजिंदगी जीवन के प्रति श्रृद्धांजलि श्रद्धा अर्पित कर करते हुए जीना है।
'''मूल तेलुगु से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
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