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:::[२]
आग लगे इस राम-राज में
::रोटी रूठी, कौर छिना है
::थाली सूनी, अन्न बिना है,
::पेट धँसा है राम-राज में
आग लगे इस राम-राज में।
रचनाकाल: १८-०९-१९५१
</poem>
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