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अपनी क़िस्मत पे नाज़ करते, ग़ुरूर होता/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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15:01, 24 अप्रैल 2011
गरचे मैंने छुपाया था राज़े-दिल तुम से
डर था तेरी निगाह में यह
ना
न
क़ुसूर होता
कहना था पर न कहा इसमें ख़ता मेरी थी
कहता दर्दे-हिज्र<ref>विरह का दर्द</ref> भी जो
ना
न
मजबूर होता
बद-क़िस्मती क़िस्स-ए-इश्क़ मुख़्तसर<ref>संक्षिप्त</ref> था बहुत
विनय प्रजापति
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