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हर कोई दिल की हथेली पे है सहरा रक्खे,
किसको सैराब <ref>तृप्त</ref> करे वो किसे प्यासा रक्खे ।
उम्र भर कौन निभाता है उम्र भर ताल्लुक़ इतना,
ऐ मेरी जान के दुश्मन तुझे अल्लाह रक्खे ।
हंस ना इतना फ़क़ीरों के अकेलेपन परमुझको अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तेरा,जा खु़दा मेरी तरह तुझको भी तन्हा रक्खे । कम नहीं तमा-ए-इबादत भी हिर-ए-ज़र सेकोई तुझसा हो,फ़क्र तो वो है के जो दीन ना दुनिया फिर नाम भी तुझसा रक्खे ।
दिल भी पागल है के उस शख़्स से वाबस्ता है,
जो किसी और का होने दे ना अपना रक्खे ।
मुझको अच्छा कम नहीं लगता कोई हमनाम तेरातमा-ए-इबादत<ref>भक्ति का लालच</ref> भी हिर्स-ए-ज़र<ref>स्वर्ण का लालच</ref> से,कोई तुझसा हो फ़ख़्र तो फिर नाम वो है के जो दीन ना दुनिया रक्खे । हंस ना इतना भी फ़क़ीरों के अकेलेपन पर,जा ख़ुदा मेरी तरह तुझको भी तुझसा तन्हा रक्खे ।
ये अता’अत क़ना’अत<ref>Satisfaction</ref> है क़ता’अत , इता’अत<ref>Loyalty, Obedience</ref> है , के चाहत है ’फ़राज़’,
हम तो राज़ी हैं वो जिस हाल में जैसा रक्खे ।
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