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मरो वे जोगी मरो, मरो मरण है मीठातिस मरणी मरो जिस मरणी गोरख मरि दीठा हबकि न बोलिबा, ठबकि न चलिबा, धीरे धरीबा पाँवगरब न करिबा, सहजै रहिबा, भणत गौरष रावं गोरक्ष कहे सुण हरे अवधू , जग में ऐसै रहणां आंषे देषिबा, कानै सुणिबा, मुष थै कछु न कहणा आसन दृढ़, आहार दृढ़, जो निद्रा दृढ़ होय नाथ कहें सुन बालका, मरे ना बूढ़ा होय बोले अमृत बाणी वरिषेगी कंबली भीजैगा पाणी । शिव गोरक्ष यह मंत्र हैगाडी पडरवा बांधिले शूंटा, सर्व सुखों का सार चले दमामा बाजिलै ऊंटा । जपो बैठ एकान्त में, तन कऊवा की सुधी बिसार शिव गोरक्ष शुभनाम मेंडाली पीपल बासे, शक्ति भरी आगाध नमूसा कै सबद बिलइया नासे । लेने से हैं तर गयेचलै बटावा थाकी बाट, नीच कोटि के व्याध सोवै डूकरिया ठोरे षाट । अजपा जपे शून्य मर धरेढूकिले कूकर भूकिले चोर, पांचो इंद्रिय निग्रह करे काढै धणी पुकारे ढोर । ब्रहम् अग्नि में होमे कायाउजड़ षेडा नगर मझारी, तासू महादेव बन्दे पाया तलि गागर ऊपर पनिहारी । मन मूरख समझे नहींमगरी परि चूल्हा धून्धाई, योगमार्ग की बात पोवणहारा कों रोटी खाई । अति चंचल भटकत फिरेकामिनि जलै अंगीठी तापै, करे बहुत उत्पातविच बैसंदर थरहर काँपे । मन मन्दिर में वास हैएक जु रढीया रढ़ती आई, पाप पुण्य का ज्ञान बहू बिवाई सासू जाई । पुण्य रुप मन शुद्ध हैनगरी को पाणी कूई आवै, पाप अशुद्ध महान उलटी चरचा गोरष गावै ।।
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