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12:16, 15 मई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKAnooditRachna
|रचनाकार=रित्सुको कवाबाता
}}
[[Category:जापानी भाषा]]
<poem>
मैं करती हूँ योगाभ्यास
बन जाती हूँ एक सारस !
मेरी फैली बाहें हैं पंख
खड़ी हो कर बायीं टांग पर
बाहें ऊपर-नीचे फड़फदाती
बनाने को संतुलन !
एक बिंदु दीवार पर
गति हो जाती है बद्द जैसे ही
मेरी दृष्टि जमती है !
जमाये दृष्टि उस बिंदु पर
लम्बे समय तक
मैं हूँ एक सारस !
'''अनुवादक: [[मंजुला सक्सेना]]'''
</poem>