941 bytes added,
13:20, 18 मई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
|संग्रह=
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>
मेरी बाहों में पिघलता हुआ सीमाब<ref>पारा</ref> कभी,
मेरी आगोश<ref>गोद</ref> में सोया हुआ सा ख़्वाब कभी,
ये मुख्तलिफ<ref>अलग-अलग</ref> तेरे अंदाज़ लुभाएँ मुझको!
कभी उड़ता हुआ बादल है तू, बरसात कभी,
कभी जवाब बने है, तो सवालात कभी…
तू हकीकत है तो क्यूँ सामने आता ही नहीं?
तू तसव्वुर<ref>ख़याल / ध्यान</ref> है अगर…
छू रहा है कैसे मुझे?
</poem>
{{KKMeaning}}