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ज़रा सुनो तो / कुमार रवींद्र
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20:38, 21 मई 2011
ज़रा सुनो तो
घर-घर में अब गीत हमारे
गूँज रहे हैं!
यहाँ चिता पर हम लेटे
पार मृत्यु के
हम जीवन की नई पहेली
बूझ रहे हैं!
मंत्र रचे थे
उन्हीं अनूठे
मंत्रों से सब नए सूर्य को
पूज रहे हैं!
अंतिम गीत हमारा यह
काला द्वीप पर
नए-नए सुर-ताल हमें अब
सूझ रहे हैं!
</poem>
अनिल जनविजय
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