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'''हद अभी पार नहीं'''  सरात रात अभी बीती नहीं है
पर रात तो बीतेगी ही
सुबह अभी हुई नहीं है
पर सुबह तो होगी ही
सुरज सूरज अभी निकला नहीं है
पर सूरज तो निकलेगा ही
रोशनी अभी फैली नहीं है
पर रोशनी तो फैलेगी ही
पतझड़ में पात झरे हैं अभी
पर कोंपलें तो कल सजेगीं ही
लेकिन जरूरी ज़रूरी नहीं यह मान ही लिया जाय कि
जब जो होना है, वह होगा ही
पानी फिर बरसेगा ही
जब मैं कुछ करूँगा
या आप कुछ करेंगे,
या काफी काफ़ी कुछ तभी होगा जब हमस ब हम सब मिलकर कुछ करेंगे
हम सब कुछ करेंगे ही
इसकी हद अभी पार नहीं हुई शायद।शायद ।
</poem>
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