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मुक्त क्रीड़ामग्न होकर खिलखिलाना / श्यामनारायण मिश्र
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09:55, 23 मई 2011
शहर के ऊंचे मकानों के तले
रेंगते कीड़े सरीख़े लोग।
औ’
उगकते
उगलते
हैं विषैला धुंआ
ये निरन्तर दानवी उद्योग।
छटपटाती चेतना होगी तुम्हारी
मनोज कुमार
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