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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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<Poem>
उस आख़िरी लम्हे का मुंतज़िर हूँ मैं
कहते हैं – ‘इतिहास ख़ुद को दोहराता है’।
<Poem>
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