{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सिन्हा
|संग्रह= }}{{KKCatKavita}}
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नए वर्ष की पहली कविता का इंतज़ार करना
जैसे उत्साह में भरकर सुबह-शाम
नवजात शिशु के मसूढ़े पर
दूध का पहला दांत उंगली दाँत उँगली से टटोलना।
मगर मायूस कर देते हैं प्रकाशक
कि कविता की मांग माँग नहीं है आजकल
जैसे कि डॉक्टर खोलती है भेद
ऐन तीसरे माह– गर्भ में लड़की के होने का।
जो उपयोगी ही नहीं
जला दी जाए जो संपादक की रद्दी में
या फिर खुद ख़ुद ही कर बैठे आत्मदाहकिसी की हवस का शिकार होकर।होकर ।
रचने से पहले ही थक जाती है कलमक़लम
सूख जाती है सियाही
हो जाती है भ्रूण-हत्या
नए वर्ष की पहली कविता की।की ।
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