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मधुमास / अलका सिन्हा

28 bytes added, 15:51, 28 मई 2011
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|रचनाकार=अलका सिन्हा
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सुबह की चाय की तरह
ज़िन्दगी की छोटी-बड़ी कठिनाइयों में
उसी शिद्दत से तलाशती हूँ तुम्हें
तेज तेज़ सिरदर्द में जिस तरहयक-ब-यक खोलने लगती हैं उंगलियाँउँगलियाँ
पर्स की पिछली जेब
और टटोलने लगती हैं
डिस्प्रिन की गोली।गोली ।
ठीक उसी वक्तवक़्त
बनफूल की हिदायती गंध के साथ
जब थपकने लगती हैं तुम्हारी उंगलियाँउँगलियाँ
टनकते सिर पर
तब अनहद नाद की तरह
गूंजने गूँजने लगती है ज़िन्दगी
और उम्र के इस दौर में पहुँचकर
समझने लगती हूँ मैं
मधुमास का असली अर्थ।अर्थ ।
</poem>
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