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शिकवा / इक़बाल
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17:48, 6 जून 2011
रहमतें हैं तेरी अगियार के काशानों पर
बर्क गिरती है तो बेचारे मुसलमानों पर ।
बुत सनमख़ानों में कहते मुसलमान गए
मंजिले-ए-दहर से ऊँटों के गुनीख़्वान गए
अपनी बगलों में दबाए हुए क़ुरान गए ।
अंददन कुफ़्र है, एहसास तुझे है कि नहीं
अनिल जनविजय
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