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शिकवा / इक़बाल

47 bytes added, 17:58, 9 जून 2011
बुत सनमख़ानों में कहते हैं मुसलमान गए ।
है खुशी उनको कि काबे के निगहबान गए ।
मंजिले-ए-दहर से ऊँटों के गुनीख़्वान हदीख़्वान गए ।
अपनी बगलों में दबाए हुए क़ुरान गए ।
ज़िंदाज़न कुफ़्र है, एहसास तुझे है कि नहीं ?
अपनी तौहीद का कुछ फाज पास<ref>बचाने की चिंता </ref> तुझे है कि नहीं?
ये शियाकत नहीं, हैं उनके ख़ज़ाने मामूर ।
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