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शिकवा / इक़बाल
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02:23, 10 जून 2011
तेरी कुदरत तो है वो, जिसकी न हद है न हिसाब ।
तू जो चाहे तो उठे सीना-सहरा से हुबाब<ref>बुलबुला </ref> ।
रहरवा
रहरव
-ए-दश्त
शाली जदा-ए
सैली ज़ दहा
मौज-ए सराब ।
बाम-ए-अगियार है, रुसवाई है, नादारी है ।
Amitprabhakar
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