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वीर-भारती / गुलाब खंडेलवाल
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19:11, 15 जून 2011
जब तक सुप्त मृगेंद्र है, गीदड़ तू ही शेर
यह सँकरीला
घात
घाट
है, दो असि एक न म्यान
आन धरो तो सिर नहीं, सिर जो धरो न आन
एक बार ही दे सका, प्राण, यही संकोच'
अंग-अंग छलनी बने, फिर भी
रुकीं
रुकी न
साँस
भौं में तेवर देखके मृत्यु न आती पास
Vibhajhalani
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