गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है / गुलाब खंडेलवाल
2 bytes added
,
20:03, 6 जुलाई 2011
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
तारों को
देख कर
देखकर
ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
मैं
जिन्दगी
ज़िन्दगी
को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है
Vibhajhalani
2,913
edits