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निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो / गुलाब खंडेलवाल
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20:24, 24 जून 2011
हमारे प्यार का भी ज़ोर आजमाते चलो
कुछ इस बहाने ही आयी तो
रौशनी
रोशनी
घर में गले
लगाके
लगा के
बिजलियों को मुस्कुराते चलो
कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस
की
कि
दिए से दिया जलाते चलो
कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले
Vibhajhalani
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