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अस्वीकरण
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रेशमा / आलोक धन्वा
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,
10:15, 25 जून 2011
कई बार समझ में नहीं
आता
दुनिया
छ्टने
छूटने
लगती है पीछे
कुछ करते नहीं बनता
अनिल जनविजय
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