Changes

बँटवारा / रश्मि रमानी

1,836 bytes added, 17:30, 25 जून 2011
ये तेरा आँगन, ये मेरा घर
घड़ी भर में ही साथ-साथ रहने वाले
हो गए सीमापार।सीमापार । 
ऊँघ रहे सैनिकों ने सँभाल ली बन्दूकें
जब-जब उनके आक़ा हो जाते थे
कुछ दिनों के बाद
जब थम जाता था सब कुछ
सरहद के सिपाही आपस में खेला करते थे पत्ते
कुछ डूब जाते थे अपनी प्रेम कहानियों में
इस तमाम आपाधापी के बावजूद
परिन्दे सारे आसमान में उड़ते थे
बिना किसी औपचारिकता के
सरहद के पार हवा चलती थी बेरोकटोक
और नदियों का पानी तो था ही लापरवाह
ख़ुद ब ख़ुद ढूँढ़ लेता था वह अपनी राह
 
दूतावासों में चल रही रस्साकशी से
कोई फ़र्क नहीं पड़ता था तमाम लोगों को
बस
कुछ लोग ढूँढ़ते थे उस नक़्शानवीस को
जो खींच दे आसमान पर भी लकीर
और बाँट दे आसमान को भी
दो-तीन-पाँच टुकड़ों में
और कर दे उसका भी तिया-पाँचा
 
उन्हें चाहिए थे वे जादूगर
जो मोड़ सकें पानी का बहाव
रोक दें हवा की रफ़्तार
अपनी नाकामयाबी पर
कोसते हों शायद भगवान को भी
पर कुछ लोग अदा करते थे शुक्रिया
उस ऊपर वाले का
जिसने सोच-समझकर संसार बनाया
और गिनकर
जंगल !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits