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02:33, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=कहूँ कोकिलाली, कहूँ कै पुकारैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=कदंब प्रसूनन सौं सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
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<poem>
'''भुजंगप्रयात'''
''(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
कहूँ कोक हूँ कोक की कारिका कौं । पढ़ावै भली-भाँति सौं सारिका कौं ॥
सुकाली कहूँ गान के भेद रांचैं । लता-लोलिनी लोल ह्वै नाँच नाँचै ॥२०॥
</poem>