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काश, कवितायेँ हादसा होतीं / मनोज श्रीवास्तव
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10:30, 29 जून 2011
न नगर में,
मजनुओं की डायरियों में भी न होतीं.
तब, प्रेम-पत्रों के दिन
लडद
लद
जाते
ममता और प्रेम दूभर हो जाते
बुद्ध और गांधी अप्रिय हो जाते,
Dr. Manoj Srivastav
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