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उनका बदला हुआ हर तौर नज़र आता है / गुलाब खंडेलवाल
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18:56, 1 जुलाई 2011
अक्स हम उनका उतारा किये हैं कागज़ पर
कीजिये जब भी ज़रा
गौर
ग़ौर
, नज़र आता है
इस बयाबान के आगे भी शहर है,ऐ दोस्त!
और, दो-चार क़दम और, नज़र आता है
कोई कोयल न तुझे
ढूँढती
ढूँढ़ती
फिरती हो, गुलाब!
आज आमों पे नया बौर नज़र आता है
<poem>
Vibhajhalani
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