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कोई छेड़े हमें किसलिए! / गुलाब खंडेलवाल
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19:08, 1 जुलाई 2011
कोई छेड़े हमें किसलिए!
हम तो मरने की धुन में
जिए
जिये
पाँव धीरे से रखना हवा
फूल सोये हैं करवट
लिए
लिये
सूरतें एक से एक थीं
और भी लाल होंगे गुलाब
उसने होठों से हैं छू
लिए
दिये
<poem>
Vibhajhalani
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