Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=कल सुबह होने के पहले / श…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
अचानक जवान होने का अहसास.....
कि जैसे सब कुछ....सब कुछ बदल गया !
तालाब की गहराई में
चाँद को पहरों निहारने के बाद
पत्थर फेंक देने की इच्छा हो गयी !
अनिद्रा की सार्थकता अर्थहीन-सी लगने लगी !

एक ही पंक्ति की पुनरावृत्ति : वितृष्णा ! उत्तेजना-आदेश --
प्रेरणा : एक संस्कार-त्रिकोण । ब्लैकाआउट : अंधकार की शरण !
साइरन : आदिम नगाड़ों का खींच कर लम्बा कर दिया गया स्वर !
कहीं कुछ भी भयानक अथवा गम्भीर ?
नीले आकाश पर मांस के लोथड़े जैसा कोई धब्बा ?
हवा का आचरण शब्द-वहन के अतिरिक्त कुछ नया ?
मिट्टी को किसी नये रंग की तलाश (?)
आदमी के अंगों में कहीं कोई वृद्धि ?
किसी नई मछली की उड़ान ?
शायद कुछ नहीं ! कुछ भी तो नहीं !

क्य हुआ ?
अगर किसी नदी ने बदल दिया अपना रास्ता !
स्थानान्तरित हो गया कोई समुद्र !
ज़रूरत है
नई फ़सल के लिए उपजाऊ जमीन
और सूर्य को आईना दिखाने वाली ऊँचाई की !
(१९६५)
</poem>
916
edits