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ज़माने भर की निगाहों से टालकर लाये / गुलाब खंडेलवाल
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03:03, 2 जुलाई 2011
हम उनके प्यार को कितना सँभालकर लाये!
हरेक लहर में क़यामत का शोर
उठाता
उठता
था
किसी तरह से ये किश्ती निकालकर लाये
फ़िज़ाँ बहार की तुझसे ही सज रही है गुलाब!
भले ही फूल कई मुँह को लाल कर लाये
<poem>
Vibhajhalani
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