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नागर से हैं खरे तरु कोऊ / शृंगार-लतिका / द्विज
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08:16, 2 जुलाई 2011
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<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(व्याज से वसंत-श्री का वर्णन)''
नागर से हैं खरे तरु कोऊ, लिएँ कर-पल्लव मैं फल-फूलन ।
पाँवड़े साजि रहे हैं कोऊ, कोऊ बीथिन बीच पराग-दुकूलन ॥
Himanshu
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