786 bytes added,
12:40, 4 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=एक-रूप आनंद-मय, श्री राधा-ब्रजचंद / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 4
}}
<poem>
सोरठा
(बुद्धिस्थिता भगवती का उपदेश)
तातैं हृदै-सँभारि, हरि-राधा को किन सुजस ।
बरनन करत बिचारि, जिनके इमि सेबक किते ॥३६॥
</poem>