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अस्वीकरण
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बरगद / भारतेन्दु मिश्र
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02:59, 5 जुलाई 2011
अनगिनत आए पखेरू
थके माँदे द्वार पर
उड़ गए अपनी दिशाओं
मे
में
सभी विश्राम कर
मैं अडिग-निश्चल-अकम्पित हूँ
डा० जगदीश व्योम
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