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02:00, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''सोरठा'''
''(कवि संतोष-वर्णन)''
रसिक रीझिहैं जानि, तौ ह्वै है कबितौ सुफल ।
न तरु सदाँ सुखदानि, श्री राधा-हरि कौ सुजस ॥६५॥
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