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कुहासे / एम० के० मधु

3 bytes added, 17:50, 6 जुलाई 2011
मैं निर्निमेष तकता हूं उस लकीर को
जो मेरी हथेली में कभी दर्ज दर्ज़ थी
फिर खो जाता हूं ऐसे