गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हमारे सामने आओ कि हम भी देख सकें / गुलाब खंडेलवाल
4 bytes added
,
20:13, 22 जुलाई 2011
नज़र नज़र से मिलाओ कि हम भी देख सकें
हँसी तो
होठों
होँठों
पे लाओ कि हम भी देख सकें
कुछ ऐसे प्यार दिखाओ कि हम भी देख सकें
हमारे बाग़ में उतरी हैं बिजलियाँ कैसी
हटो भी
,
काली घटाओ! कि हम भी देख सकें
गये किधर वे उमंगो भरे बहार के दिन
Vibhajhalani
2,913
edits