मुरझाया पेड़ों का बाना।
इतने दिन का नागा करती
वर्षा की पायल अकुल की आहटसुनने को पत्थर आकुल हैं
लोहा सारा गला हुआ है
उसको पानी में ढलना है,
सलवट-सलवट कटा हुआ
::::: पैरों के नीचे
पृथ्वी का आँचल पुकारता
पानी-....पानी-....पानी-पानी।....पानी....।
बादल अपने नियत समय पर
इसको - उसको - सबको - उनको
पानी देंगे
तब आएँगे।
::::: अभी समय
::::: नहीं आया है।
सुनती हूँ -
पानी बरसेगा।बरसेगा.....।
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