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यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
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19:55, 7 जुलाई 2011
प्यार की मंज़िल तो है इस बेख़ुदी से दो क़दम
सैंकडों
सैकड़ों
कोसों का जिसको फासला समझे हैं हम
आँखों-आँखों में इशारा कर के आँखें मूँद लीं
Vibhajhalani
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