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दिल के लुट जाने का ग़म कुछ भी नहीं / गुलाब खंडेलवाल
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18:29, 8 जुलाई 2011
मर के यह निकला कि हम कुछ भी नहीं
जा रहे मुँह
फेर कर
फेरकर
भौंरे गुलाब!
आप की
आपकी
ख़ुशबू में दम कुछ भी नहीं!
<poem>
Vibhajhalani
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