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निराश प्राण में आशा के सुर सजाते चलो / गुलाब खंडेलवाल
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18:32, 8 जुलाई 2011
कुछ इस बहाने ही आयी तो रोशनी घर में
गले
लगा के
लगाके
बिजलियों को मुस्कुराते चलो
कहाँ से लौ उतर आई है इसको मत पूछो
तुम्हें तो बस कि
दिए
दिये
से दिया जलाते चलो
कहीं पड़ाव से पहले ही नींद घेर न ले
Vibhajhalani
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