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कितनी भी दूर जाके बसे हों निगाह से / गुलाब खंडेलवाल
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18:57, 8 जुलाई 2011
अच्छा था भूलना ही मगर इस निबाह से
मंजिल
मंज़िल
हो आख़िरी यही, यह हो नहीं सकता
आगे गयी है राह इस आरामगाह से
Vibhajhalani
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