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कुछ भी नहीं जो हमसे छिपाते हो, ये क्या है / गुलाब खंडेलवाल
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19:00, 8 जुलाई 2011
कहते हो, 'हमें क्यों न बुलाते हो,'--ये क्या है!
जबतक
सजा के खुद
सजाके ख़ुद
को हम आते हैं मंच पर
परदा ही सामने का गिराते हो, ये क्या है!
दिन-रात याद करने का
अहसान
एहसान
तो गया
इल्ज़ाम भूलने का लगाते हो, ये क्या है!
Vibhajhalani
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